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श्रंगार-विलास >> वयस्क किस्से

वयस्क किस्से

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 1990
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 774
आईएसबीएन :

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मस्तराम के मस्त कर देने वाले किस्से

दिलफेंक लड़की या लड़का?

मेरे प्यारे दोस्तों, आप सबको मेरा नमस्ते! आप सब अच्छी तरह से जानते हैं कि एक बार जब इंसान के दिमाग में "काम लगाने" की हसरत पैदा हो जाती है, और उसे इसका मौका न मिले, तब धीरे-धीरे उसकी ऐसी हालत हो जाती है कि वह चाह कर भी उस पर अपना काबू नहीं कर पाता है, और किसी न किसी तरह हसरत पूरी करने का मौका ढूँढ़ ही लेता है। फिर चाहे वो आदमी हो या औरत।

मैं ठहरा एक जवान लड़का.., मस्त लड़की को देखते ही जिसका पैन्ट में हरकत होने लगती है। अपनी निजी जिंदगी में मैं एक ऐसा छात्र हूं... जो कि कई सालों से कालेज में अपना अड्डा जमाए हुए है। कालेज के आम लड़के मेरा रौब खाते हैं और लड़कियों से भी मेरी अच्छी बनती है, पर जिस सुन्दरी की मैं चर्चा करने जा रहा हूँ, वो आज की हीरोईन कटरीना कैफ के टक्कर की है। यौवन ऐसा कि जैसे बरसाती नदी का उफान भी कम लगे। एक बार सजी-संवरी देख लो, तो होश उड़ जायें और उसे पाने की तमन्ना दिल को बिलकुल ही बेकाबू कर दे।

मैं अपनी पढ़ाई के दौरान एक बड़े शहर में अपने मामा के यहां रहता था। मेरे दोनों मामाओं की शादी हो चुकी थी और उनकी सुन्दर पत्नियां थीं, पर बड़ी वाली मामी तो लाजबाव थी, जिसकी मैं बात कर रहा हूँ...!! शुरू में तो दिल को बड़ा मनाया, पर दिल कहां मानता है, और उसका काम लगाने की चाहत लेकर मैं तरसने लगा! अगर कभी उसकी नंगी टांग भी दिख जाती तो अपने आपको संभालने के लिए मुझे बाथरूम में जाकर "अपना हाथ जगन्नाथ" करके...ही शांति मिलती थी... वैसे रोजमर्रा के जीवन में उसकी और मेरी अक्सर लम्बी बातें होती रहती थीं, पर मैं यह नहीं जानता था कि वह मुझे अपने साथ मजे लेने देगी कि नहीं? क्या वह मेरे बारे में इस तरह सोचती थी या सोच सकती थी! लगता था कि वह मुझे बिल्कुल सीधा और लल्लू प्रसाद ही समझती थी।

एक दिन की बात है कि मैं कालेज के लिए निकल ही रहा था कि बाहर जाते वक्त मामी ने गुसलखाने में से आवाज देकर मुझसे साबुन मांगा, गुसलखाने के दरवाजे की चिटकनी ठीक से बंद नहीं होती थी, इसलिए हमारे यहाँ का रिवाज था कि अगर कोई नहा रहा है, तभी दरवाजा पूरा लुढ़का रहेगा, नहीं तो दरवाजा हमेशा खुला रहेगा। मैं दूसरे कमरे से हमाम की एक बट्टी लेकर वहाँ जा ही रहा था कि अचानक वहाँ पर पड़े पानी में मेरा पैर फिसल गया और मैं कुछ ऐसा रपटा कि मेरा मुँह दरवाजे को थोड़ा खोलता हुआ सीधा बाथरूम में झाँकने लगा।

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